निस्पृह लक्षण (महंत लक्षणांचाच विस्तार...) (दासबोध:दशक चौदावा-समास पहिला)

निस्पृह लक्षणनाम
            ||श्रीराम ||
ऐका स्पृहाची सिकवण| युक्ति बुद्धि शाहाणपण |
जेणें राहे समाधान| निरंतर ||||
सोपा मंत्र परी नेमस्त| साधें वोषध गुणवंत |
साधें बोलणें सप्रचित| तैसें माझें ||||
तत्काळचि अवगुण जाती| उत्तम गुणाची होये प्राप्ती |
शब्दवोषध तीव्र श्रोतीं| साक्षपें सेवावें ||||
निस्पृहता धरूं नये| धरिली तरी सोडूं नये |
सोडिली तरी हिंडों नये| वोळखीमधें ||||
कांता दृष्टी राखों नये| मनास गोडी चाखऊं नये |
धारिष्ट चळतां दाखऊं नये| मुख आपुलें ||||
येकेस्थळीं राहों नये| कानकोंडें साहों नये |
द्रव्य दारा पाहों नये| आळकेपणें ||||
आचारभ्रष्ट होऊं नये| दिल्यां द्रव्य घेऊं नये |
उणा शब्द येऊं नये| आपणावरी ||||
भिक्षेविषीं लाजों नये| बहुत भिक्षा घेऊं नये |
पुसतांहि देऊं नये| वोळखी आपली ||||
धड मळिन नेसों नये| गोड अन्न खाऊं नये |
दुराग्रह करूं नये| प्रसंगें वर्तावें ||||
भोगीं मन असों नये| देहदुःखें त्रासों नये |
पुढें आशा धरूं नये| जीवित्वाची ||१०||
विरक्ती गळों देऊं नये| धारिष्ट चळों देऊं नये |
ज्ञान मळिण होऊं नये| विवेकबळें ||११||
करुणाकीर्तन सोडूं नये| अंतर्ध्यान मोडूं नये ||
प्रेमतंतु तोडूं नये| सगुणमूर्तीचा ||१२||
पोटीं चिंता धरूं नये| कष्टें खेद मानूं नये |
समइं धीर सांडूं नये| कांहीं केल्या ||१३||
अपमानितां सिणों नये| निखंदितां कष्टों नये |
धिःकारितां झुरों नये| कांहीं केल्या ||१४||
लोकलाज धरूं नये| लाजवितां लाजों नये  |
खिजवितां खिजों नये| विरक्त पुरुषें ||१५||
शुद्ध मार्ग सोडूं नये| दुर्जनासीं तंडों नये |
समंध पडों देऊं नये| चांडाळासी ||१६||
तपीळपण धरूं नये| भांडवितां भांडों नये |
उडवितां उडऊं नये| निजस्थिती आपुली ||१७||
हांसवितां हासों नये| बोलवितां बोलों नये |
चालवितां चालों नये| क्षणक्ष्णा ||१८||
येक वेष धरूं नये| येक साज करूं नये |
येकदेसी होऊं नये| भ्रमण करावें ||१९||
सलगी पडों देऊं नये| प्रतिग्रह घेऊं नये |
सभेमध्यें बैसों नये| सर्वकाळ ||२०||
नेम आंगीं लाऊं नये| भरवसा कोणास देऊं नये |
अंगीकार करूं नये| नेमस्तपणाचा ||२१||
नित्यनेम सांडूं नये| अभ्यास बुडों देऊं नये |
परतंत्र होऊं नये| कांहीं केल्यां ||२२||
स्वतंत्रता मोडूं नये| निरापेक्षा तोडूं नये |
परापेक्षा होऊं नये| क्षणक्ष्णा ||२३||
वैभव दृष्टीं पाहों नये| उपाधीसुखें राहों नये |
येकांत मोडूं देऊं नये| स्वरूपस्थितीचा ||२४||
अनर्गळता करूं नये| लोकलाज धरूं नये |
कोठेंतरी होऊं नये| आसक्त कदां ||२५||
परंपरा तोडूं नये| उआपाधी मोडूं देऊं नये |
ज्ञानमार्गे सोडूं नये| कदाकाळीं ||२६||
कर्ममार्ग सांडूं नये| वैराग्य मोडूं देऊं नये |
साधन भजन खंडूं नये| कदाकाळीं ||२७||
अतिवाद करूं नये| अनित्य पोटीं धऊं नये |
रागें भरीं भरों नये|  भलतीकडे ||२८||
न मनी त्यास सांगों नये| कंटाळवाणें बोलों नये |
बहुसाल असो नये| येकें स्थळीं ||२९||
कांहीं उपाधी करूं नये| केली तरी धरूं नये |
धरिली तरी सांपडों नये| उपाधीमध्यें ||३०||
थोरपणें असो नये| महत्त्व धरून बैसों नये |
कांहीं मान इछूं नये| कोठेंतरी ||३१||
साधेपण सोडूं नये| सानेपण मोडूं नये |
बळात्कारें जोडूं नये| अभिमान आंगीं ||३२||
अधिकारेवीण सांगों नये| दाटून उपदेश देऊं नये |
कानकोंडा करूं नये| परमार्थ कदा ||३३||
कठीण वैराग्य सोडूं नये| कठीण अभ्यास सांडूं नये |
कठिणता धरूं नये| कोणेकेविशइं ||३४||
कठीण शब्द बोलों नये| कठीण आज्ञा करूं नये |
कठीण धीरत्व सोडूं नये| कांहीं केल्यां ||३५||
आपण आसक्त होऊं नये| केल्यावीण सांगों नये |
बहुसाल मागों नये| शिष्यवर्गांसी ||३६||
उत्धट शब्द बोलों नये| इंद्रियेंस्मरण करूं नये |
शाक्तमार्गें भरों नये| मुक्तपणें भरीं ||३७||
नीच कृतीं लाजों नये| वैभव होतां माजों नये |
क्रोधें भरीं भरों नये| जाणपणें ||३८||
थोरपणें चुकों नये| न्याये नीति सांडूं नये |
अप्रमाण वर्तों नये| कांहीं केल्या ||३९||
कळल्यावीण बोलों नये| अनुमानें निश्चये करूं नये |
सांगतां दुःख धरूं नये| मूर्खपणें ||४०||
सावधपण सोडुं नये| व्यापकपण सांडुं नये |
कदा सुख मानूं नये| निसुगपणाचें ||४१||
विकल्प पोटीं धरूं नये| स्वार्थआज्ञा करूं नये |
केली तरी टाकूं नये| आपणास पुढें ||४२||
प्रसंगेंवीण बोलों नये| अन्वयेंवीण गाऊं नये |
विचारेंवीण जाऊं नये| अविचारपंथें ||४३||
परोपकार सांडूं नये| परपीडा करूंनये |
विकल्प पडों देऊं नये| कोणीयेकासी ||४४||
नेणपण सोडूं नये| महंतपण सांडूं नये |
द्रव्यासाठीं हिंडों नये| कीर्तन करीत ||४५||
संशयात्मक बोलों नये| बहुत निश्चये करूं नये |
निर्वाहेंवीण धरूं नये| ग्रंथ हातीं ||४६||
जाणपणें पुसों नये| अहंभाव दिसों नये |
सांगेन ऐसें म्हणों नये| कोणीयेकासी ||४७||
ज्ञानगर्व धरूं नये| सहसा छळणा करूं नये |
कोठें वाद घालुं नये| कोणीयेकासी ||४८||
स्वार्थबुद्धी जडों नये| कारबारीं पडों नये |
कार्यकर्ते होऊं नये| राजद्वारीं ||४९||
कोणास भर्वसा देऊं नये| जड भिक्षा मागों नये |
भिक्षेसाथीं सांगों नये| परंपरा आपुली ||५०||
सोइरिकींत पडों नये| मध्यावर्ति घडों नये |
प्रपंचाची जडों नये| उपाधी आंगीं ||५१||
प्रपंचप्रस्तीं जाऊं नये| बाष्कळ अन्न खाऊं नये |
पाहुण्यासरिसें घेऊं नये| आमंत्रणें कदां ||५२||
श्राध पक्ष सटी सामासें| शांती फळशोबन बारसें |
भोग राहात बहुवसें| नवस व्रतें उद्यापनें ||५३||
तेथें निस्पृहें जाऊं नये| त्याचें अन्न खाऊं नये |
येळिलवाणें करूं नये| आपणासी ||५४||
लग्नमुहुर्तीं जाऊं नये| पोटासाठीं गाऊं नये |
मोलें कीर्तन करूं नये| कोठेंतरी ||५५||
आपली भिक्षा सोडूं नये| वारें अन्न खाऊं नये |
निस्पृहासि घडों नये| मोलयात्रा ||५६||
मोलें सुकृत करूं नये| मोलपुजारी होऊं नये |
दिल्हा तरी घेऊं नये| इनाम निस्पृहें ||५७||
कोठें मठ करूं नये| केला तरी तो धरूं नये |
मठपती होऊन बैसों नये| निस्पृह पुरुषें ||५८||
निस्पृहें अवघेंचि करावें| परी आपण तेथें न सांपडावें |
परस्परें उभारावें| भक्तिमार्गासी ||५९||
प्रेत्नेंविण राहों नये| आळस दृष्टी आणूं नये |
देह अस्तां पाहों नये| वियोग उपासनेचा ||६०||
उपाधीमध्यें पडों नये| उपाधी आंगीं जडों नये |
भजनमार्ग मोडूं नये| निसंगळपणें ||६१||
बहु उपाधी करूं नये| उपाधीविण कामा नये |
सगुणभक्ति सोडूं नये| विभक्ति खोटी ||६२||
बहुसाल धांवों नये| बहुसाल साहों नये |
बहुत कष्ट करूं नये| असुदें खोटें ||६३||
बहुसाल बोलों नये| अबोलणें कामा नये |
बहुत अन्न खाऊं नये| उपवास खोटा ||६४||
बहुसाल निजों नये| बहुत निद्रा मोडुं नये |
बहुत नेम धरूं नये| बाश्कळ खोटें ||६५||
बहु जनीं असों नये| बहु आरण्य सेऊं नये |
बहु देह पाळूं नये| आत्महत्या खोटी ||६६||
बहु संग धरूं नये| संतसंग सांडुं नये |
कर्मठपण कामा नये| अनाचार खोटा ||६७||
बहु लोकिक सांडुं नये| लोकाधेन होऊं नये |
बहु प्रीती कामा नये| निष्ठुरता खोटी ||६८||
बहु संशये धरूं नये| मुक्तमार्ग कामा नये |
बहु साधनीं पडों नये| साधनेंवीण खोटें ||६९||
बहु विषये भोगूं नये| विषयत्याग करितां नये |
देहलोभ धरूं नये| बहु त्रास खोटा ||७०||
वेगळा अनुभव घेऊं नये| अनुभवेंवीण कामा नये |
आत्मस्थिती बोलों नये| स्तब्धता खोटी ||७१||
मन उरों देऊं नये| मनेंवीण कामा नये |
अलक्ष वस्तु लक्षा नये| लक्षेंवीण खोटें ||७२||
मनबुद्धिअगोचर| बुद्धीवीण अंधकार |
जाणीवेचा पडो विसर| नेणीव खोटी ||७३||
ज्ञातेपण धरूं नये| ज्ञानेंवीण कामा नये |
अतर्क्य वस्तु तर्का न ये| तर्केंवीण खोटें ||७४||
दृश्यस्मरण काम नये| विस्मरण पडों नये |
कांहीं चर्चा करूं नये| केलियावीण न चले ||७५||
जगीं भेद कामा नये| वर्णसंकर करूं नये |
आपला धर्म उडऊं नये| अभिमान खोटा ||७६||
आशाबद्धत बोलों नये| विवेकेंवीण चालों नये |
समाधान हालों नये| कांहीं केल्यां ||७७||
अबद्ध पोथी लेहों नये| पोथीवीण कामा नये |
अबद्ध वाचूं नये| वाचिल्यावीण खोटें ||७८||
निस्पृहें वगत्रुत्व सांडूं नये| आशंका घेतां भांडों नये |
श्रोतयांचा मानूं नये| वीट कदा ||७९||
हें सिकवण धरितां चित्तीं| सकळ सुखें वोळगती |
आंगीं बाणें महंती| अकस्मात ||८०||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे
निस्पृहलक्षणनाम समास पहिला ||||१४. १

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