राजकारण निरूपण (दशक अकरावा-समास पाचवा)

राजकारण निरूपण
            ||श्रीराम ||
कर्म केलेंचि करावें| ध्यान धरिलेंचि धरावें |
विवरलेंचि विवरावें| पुन्हा निरूपण ||||
तैसें आम्हांस घडलें| बोलिलेंचि बोलणें पडिलें |
कां जें बिघडलेंचि घडलें| पाहिजे समाधान ||||
अनन्य राहे समुदाव| इतर जनास उपजे भाव |
ऐसा आहे अभिप्राव| उपायाचा ||||
मुख्य हरिकथा निरूपण| दुसरें तें राजकरण |
तिसरें तें सावधपण| सर्वविषईं ||||
चौथा अत्यंत साक्षप| फेडावे नाना आक्षप |
अन्याये थोर अथवा अल्प| क्ष्मा करीत जावे ||||
जाणावें पराचें अंतर| उदासीनता निरंतर |
नीतिन्यायासि अंतर| पडोंच नेदावें ||||
संकेतें लोक वेधावा| येकूनयेक बोधावा |
प्रपंचहि सावरावा| येथानशक्त्या ||||
प्रपंचसमयो वोळखावा| धीर बहुत असावा |
संमंध पडों नेदावा| अति परी तयाचा ||||
उपाधीसी विस्तारावें| उपाधींत न संपडावें |
नीचत्व पहिलेंच घ्यावें| आणि मूर्खपण ||||
दोष देखोन झांकावे| अवगुण अखंड न बोलावे |
दुर्जन सांपडोन सोडावे| परोपकार करूनी ||१०||
तऱ्हे भरोंच नये| सुचावे नाना उपाये |
नव्हे तेंचि करावें कायें| दीर्घ प्रेत्नें ||११||
फड नासोंचि नेदावा| पडिला प्रसंग सांवरावा |
अतिवाद न करावा| कोणीयेकासी ||१२||
दुसऱ्याचें अभिष्ट जाणावें| बहुतांचें बहुत सोसावें |
न सोसे तरी जावें| दिगांतराप्रती ||१३||
दुखः दुसऱ्याचें जाणावें| ऐकोन तरी वांटून घ्यावें |
बरें वाईट सोसावें| समुदायाचें ||१४||
अपार असावें पाठांतर| सन्निधचि असावा विचार |
सदा सर्वदा तत्पर| परोपकारासी ||१५||
शांती करून करवावी| तऱ्हे सांडून सांडवावी |
क्रिया करून करवावी| बहुतांकरवीं ||१६||
करणें असेल अपाये| तरी बोलोन दाखऊं नये |
परस्परेंचि प्रत्यये| प्रचितीस आणावा ||१७||
जो बहुतांचे सोसीन| त्यास बहुतेक लोक मिळेना |
बहुत सोसितां उरेना| महत्व आपुलें ||१८||
राजकारण बहुत करावें| परंतु कळोंच नेदावें |
परपीडेवरी नसावें| अंतःकरण ||१९||
लोक पारखून सांडावे| राजकारणें अभिमान झाडावे |
पुन्हा मेळऊन घ्यावें| दुरील दोरे ||२०||
हिरवटासी दुरी धरावें| कचरटासी न बोलावें |
समंध पडता सोडून जावें| येकीकडे ||२१||
ऐसें असो राजकारण| सांगतां तें असाधारण |
सुचित अस्तां अंतःकरण| राजकारण जाणे ||२२||
वृक्षीं रूढासी उचलावें| युद्धकर्त्यास ढकलून द्यावें |
कारबाराचें सांगावें| आंग कैसें ||२३||
पाहातां तरी सांपडेना| कीर्ति करूं तरी राहेना |
आलें वैभव अभिळासीना| कांहीं केल्यां ||२४||
येकांची पाठी राखणें| येकांस देखो न सकणें |
ऐसीं नव्हेत कीं लक्षणें| चातुर्याचीं ||२५||
न्याय बोलतांहि मानेना| हित तेंचि न ये मना |
येथें कांहींच चालेना| त्यागेंवीण ||२६||
श्रोतीं कळोन आक्षेपिलें| म्हणौन बोलिलेंचि बोलिलें |
न्यूनपूर्ण क्ष्मा केलें| पाहिजे श्रोतीं ||२७||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे
राजकारणनिरूपणनाम समास पांचवा ||||११. ५

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