महंत लक्षण (दासबोध: दशक अकरावा-समास सहावा)

महंत लक्षण
            ||श्रीराम ||
शुद्ध नेटकें ल्याहावें| लेहोन शुद्ध शोधावें |
शोधून शुद्ध वाचावें| चुकों नये ||||
विश्कळित मात्रुका नेमस्त कराव्या| धाट्या जाणोन सदृढ धराव्या |
रंग राखोन भराव्या| नाना कथा ||||
जाणायाचें सांगतां न ये| सांगायाचें नेमस्त न ये |
समजल्याविण कांहींच न ये| कोणीयेक ||||
हरिकथा निरूपण| नेमस्तपणें राजकारण |
वर्तायाचें लक्षण| तेंहि असावें ||||
पुसों जाणे सांगों जाणे| अर्थांतर करूं जाणे |
सकळिकांचें राखों जाणे| समाधान ||||
दीर्घ सूचना आधीं कळे| सावधपणें तर्क प्रबळे |
जाणजाणोनि निवळे| येथायोग्य ||||
ऐसा जाणे जो समस्त| तोचि महंत बुद्धिमंत |
यावेगळें अंतवंत| सकळ कांहीं ||||
ताळवेळ तानमानें| प्रबंद कविता जाड वचनें |
मज्यालसी नाना चिन्हें| सुचती तया ||||
जो येकांतास तत्पर| आधीं करी पाठांतर |
अथवा शोधी अर्थांतर| ग्रंथगर्भींचें ||||
आधींच सिकोन जो सिकवी| तोचि पावे श्रेष्ठ पदवी |
गुंतल्या लोकांस उगवी| विवेकबळें ||१०||
अक्षर सुंदर वाचणें सुंदर| बोलणें सुंदर चालणें सुंदर |
भक्ति ज्ञान वैराग्य सुंदर| करून दावी ||११||
जयास येत्नचि आवडे| नाना प्रसंगीं पवाडे |
धीटपणें प्रगटे दडे| ऐसा नव्हे ||१२||
सांकडीमधें वर्तों जाणे| उपाधीमधें मिळों जाणे |
अलिप्तपणें राखों जाणे| आपणासी ||१३||
आहे तरी सर्वां ठाईं| पाहों जातां कोठेंचि नाहीं |
जैसा अंतरात्मा ठाईंचा ठाईं| गुप्त जाला ||१४||
त्यावेगळें कांहींच नसे| पाहों जातां तो न दिसे |
न दिसोन वर्तवीतसे| प्राणीमात्रांसी ||१५||
तैसाच हाहि नानापरी| बहुत जनास शाहाणे करी |
नाना विद्या त्या विवरी| स्थूळ सूक्ष्मा ||१६||
आपणाकरितां शाहाणे होती| ते सहजचि सोये धरिती |
जाणतेपणाची महंती| ऐसी असे ||१७||
राखों जाणें नीतिन्याय| न करी न करवी अन्याये |
कठीण प्रसंगीं उपाये| करूं जाणे ||१८||
ऐसा पुरुष धारणेचा| तोचि आधार बहुतांचा |
दास म्हणे रघुनाथाचा| गुण घ्यावा ||१९||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे
महंतलक्षणनिरूपणनाम समास सहावा ||||११. ६

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