कुविद्या लक्षण (दासबोध: दशक दुसरा-समास तिसरा)

कुविद्या लक्षण
                   ||श्रीराम ||
ऐका कुविद्येचीं लक्षणें| अति हीनें कुलक्षणें |
त्यागार्थ बोलिलीं ते श्रवणें| त्याग घडे ||||
ऐका कुविद्येचा प्राणी| जन्मा येऊन केली हानी |
सांगिजेल येहीं लक्षणीं| वोळखावा ||||
कुविद्येचा प्राणी असे| तो कठिण निरूपणें त्रासे |
अवगुणाची समृद्धि असे| म्हणौनियां ||||

श्लोक  ||दंभो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च |
            अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ संपदमासुरीम् ||

काम क्रोध मद मत्सर| लोभ दंभ तिरस्कार |
गर्व ताठा अहंकार| द्वेष विषाद विकल्पी ||||
आशा ममता तृष्णा कल्पना| चिंता अहंता कामना भावना |
असूय अविज्ञा ईषणा वासना| अतृप्ती लोलंगता ||||
इछ्या वांछ्या चिकिछ्या निंदा| आनित्य ग्रामणी मस्ती सदा |
जाणीव अवज्ञा विपत्ती आपदा| दुर्वृत्ती दुर्वासना ||||
स्पर्धा खटपट आणि चटचट| तर्हे झटपट आणी वटवट |
सदा खटपट आणी लटपट| परम वेथा कुविद्या ||||
कुरूप आणी कुलक्षण| अशक्त आणी दुर्जन |
दरिद्री आणी कृपण| आतिशयेंसीं ||||
आळसी आणी खादाड| दुर्बळ आणी लाताड |
तुटक आणी लाबाड| आतिशयेंसीं ||||
मूर्ख आणी तपीळ| वेडें आणी वाचाळ |
लटिकें आणी तोंडाळ| आतिशयेंसीं ||१०||
नेणे आणी नायके| न ये आणी न सीके |
न करी आणी न देखे| अभ्यास दृष्टी ||११||
अज्ञान आणी अविस्वासी| छळवादी आणी दोषी |
अभक्त आणी भक्तांसी| देखों सकेना ||१२||
पापी आणी निंदक| कष्टी आणी घातक |
दुःखी आणी हिंसक| आतिशयेंसीं ||१३||
हीन आणी कृत्रिमी| रोगी आणी कुकर्मी |
आचंगुल आणी अधर्मी| वासना रमे ||१४||
हीन देह आणी ताठा| अप्रमाण आणी फांटा |
बाष्कळ आणी करंटा| विवेक सांगे ||१५||
लंडी आणी उन्मत्त| निकामी आणी डुल्लत |
भ्याड आणी बोलत| पराक्रमु ||१६||
कनिष्ठ आणी गर्विष्ठ| नुपरतें आणी नष्ट |
द्वेषी आणी भ्रष्ट| आतिशयेंसीं ||१७||
अभिमानी आणी निसंगळ| वोडगस्त आणी खळ |
दंभिक आणी अनर्गळ| आतिशयेंसीं ||१८||
वोखटे आणी विकारी| खोटे आणी अनोपकारी |
अवलक्षण आणी धिःकारी| प्राणिमात्रांसी ||१९||
अल्पमती आणी वादक| दीनरूप आणि भेदक |
सूक्ष्म आणी त्रासक| कुशब्दें करूनि ||२०||
कठिणवचनी कर्कशवचनी| कापट्यवचनी संदेहवचनी |
दुःखवचनी तीव्रवचनी| क्रूर निष्ठुर दुरात्मा ||२१||
न्यूनवचनी पैशून्यवचनी| अशुभवचनी अनित्यवचनी |
द्वेषवचनी अनृत्यवचनी| बाष्कळवचनी धिःकारु ||२२||
कओअटी कुटीळ गाठ्याळ| कुर्टें कुचर नट्याळ |
कोपी कुधन टवाळ| आतिशयेंसीं ||२३||
तपीळ तामस अविचार| पापी अनर्थी अपस्मार |
भूत समंधी संचार| आंगीं वसे ||२४||
आत्महत्यारा स्त्रीहत्यारा| गोहत्यारा ब्रह्महत्यारा |
मातृहत्यारा पितृहत्यारा| माहापापी पतित ||२५||
उणें कुपात्र कुतर्की| मित्रद्रोही विस्वासघातकी |
कृतघ्न तल्पकी नारकी| अतित्याई जल्पक ||२६||
किंत भांडण झगडा कळहो| अधर्म अनराहाटी शोकसंग्रहो |
चाहाड वेसनी विग्रहो| निग्रहकर्ता ||२७||
द्वाड आपेसी वोंगळ| चाळक चुंबक लच्याळ |
स्वार्थी अभिळासी वोढाळ| आद्दत्त झोड आदखणा ||२८||
शठ शुंभ कातरु| लंड तर्मुंड सिंतरु |
बंड पाषांड तश्करु| अपहारकर्ता ||२९||
धीट सैराट मोकाट| चाट चावट वाजट |
थोट उद्धट लंपट| बटवाल कुबुद्धी ||३०||
मारेकरी वरपेकरी| दरवडेकरी खाणोरी |
मैंद भोंदु परद्वारी| भुररेकरी चेटकी ||३१||
निशंक निलाजिरा कळभंट| टौणपा लौंद धट उद्धट |
ठस ठोंबस खट नट| जगभांड विकारी ||३२||
अधीर आळिका अनाचारी| अंध पंगु खोकलेंकरी |
थोंटा बधिर दमेकरी| तऱ्ही ताठा न संडी ||३३||
विद्याहीन वैभवहीन| कुळहीन लक्ष्मीहीन |
शक्तिहीन सामर्थ्यहीन| अदृष्टहीन भिकारी ||३४||
बळहीन कळाहीन| मुद्राहीन दीक्षाहीन |
लक्षणहीन लावण्यहीन| आंगहीन विपारा ||३५||
युक्तिहीन बुद्धिहीन| आचारहीन विचारहीन |
क्रियाहीन सत्वहीन| विवेकहीन संशई ||३६||
भक्तिहीन भावहीन| ज्ञानहीन वैराग्यहीन |
शांतिहीन क्ष्माहीन| सर्वहीन क्षुल्लकु ||३७||
समयो नेणे प्रसंग नेणे| प्रेत्न नेणे अभ्यास नेणे |
आर्जव नेणे मैत्री नेणे| कांहींच नेणे अभागी ||३८||
असो ऐसे नाना विकार| कुलक्षणाचें कोठार |
ऐसा कुविद्येचा नर| श्रोतीं वोळखावा ||३९||
ऐसीं कुविद्येचीं लक्षणें| ऐकोनि त्यागची करणें |
अभिमानीं तऱ्हें भरणें| हें विहित नव्हें ||४०||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे कुविद्यालक्षणनाम
              समास तिसरा ||||२. ३

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