उत्तम लक्षण (दासबोध:दशक दुसरा-समास दुसरा)

उत्तम लक्षण
                   ||श्रीराम ||
श्रोतां व्हावें सावधान| आतां सांगतों उत्तम गुण |
जेणें करितां बाणे खुण| सर्वज्ञपणाची ||||
वाट पुसल्याविण जाऊं नये| फळ वोळखिल्याविण खाऊं नये |
पडिली वस्तु घेऊं नये| येकायेकीं ||||
अति वाद करूं नये| पोटीं कपट धरूं नये |
शोधल्याविण करूं नये| कुळहीन कांता ||||
विचारेंविण बोलों नये| विवंचनेविण चालों नये |
मर्यादेविण हालों नये| कांहीं येक ||||
प्रीतीविण रुसों नये| चोरास वोळखी पुसों नये |
रात्री पंथ क्रमूं नये| येकायेकीं ||||
जनीं आर्जव तोडूं नये| पापद्रव्य जोडूं नये |
पुण्यमार्ग सोडूं नये| कदाकाळीं ||||
निंदा द्वेष करूं नये| असत्संग धरूं नये |
द्रव्यदारा हरूं नये| बळात्कारें ||||
वक्तयास खोदूं नये| ऐक्यतेसी फोडूं नये |
विद्याअभ्यास सोडूं नये| कांहीं केल्या ||||
तोंडाळासि भांडों नये| वाचाळासी तंडों नये |
संतसंग खंडूं नये| अंतर्यामीं ||||
अति क्रोध करूं नये| जिवलगांस खेदूं नये |
मनीं वीट मानूं नये| सिकवणेचा ||१०||
क्षणाक्षणां रुसों नये| लटिका पुरुषार्थ बोलों नये |
केल्याविण सांगों नये| आपला पराक्रमु ||११||
बोलिला बोल विसरों नये| प्रसंगी सामर्थ्य चुकों नये |
केल्याविण निखंदूं नये| पुढिलांसि कदा ||१२||
आळसें सुख मानूं नये| चाहाडी मनास आणूं नये |
शोधिलुआविण करूं नये| कार्य कांहीं ||१३||
सुखा आंग देऊं नये| प्रेत्न पुरुषें सांडूं नये |
कष्ट करितां त्रासों नये| निरंतर ||१४||
सभेमध्यें लाजों नये| बाष्कळपणें बोलों नये |
पैज होड घालूं नये| काहीं केल्या ||१५||
बहुत चिंता करूं नये| निसुगपणें राहों नये |
परस्त्रीतें पाहों नये| पापबुद्धी ||१६||
कोणाचा उपकार घेऊं नये| घेतला तरी राखों नये |
परपीडा करूं नये| विस्वासघात ||१७||
शोच्येंविण असों नये| मळिण वस्त्र नेसों नये |
जणारास पुसों नये| कोठें जातोस म्हणौनी ||१८||
व्यापकपण सांडूं नये| पराधेन होऊं नये |
आपलें वोझें घालूं नये| कोणीयेकासी ||१९||
पत्रेंविण पर्वत करूं नये| हीनाचें रुण घेऊं नये |
गोहीविण जाऊं नये| राजद्वारा ||२०||
लटिकी जाजू घेऊं नये| सभेस लटिकें करूं नये |
आदर नस्तां बोलों नये| स्वभाविक ||२१||
आदखणेपण करूं नये| अन्यायेंविण गांजूं नये |
अवनीतीनें वर्तों नये| आंगबळें ||२२||
बहुत अन्न खाऊं नये| बहुत निद्रा करूं नये |
बहुत दिवस राहूं नये| पिसुणाचेथें ||२३||
आपल्याची गोही देऊं नये| आपली कीर्ती वर्णूं नये |
आपलें आपण हांसों नये| गोष्टी सांगोनी ||२४||
धूम्रपान घेऊं नये| उन्मत्त द्रव्य सेवूं नये |
बहुचकासीं करूं नये| मैत्री कदा ||२५||
कामेंविण राहों नये| नीच उत्तर साहों नये |
आसुदें अन्न सेऊं नये| वडिलांचेंहि ||२६||
तोंडीं सीवी असों नये| दुसऱ्यास देखोन हांसों नये |
उणें अंगीं संचारों नये| कुळवंताचे ||२७||
देखिली वस्तु चोरूं नये| बहुत कृपण होऊं नये |
जिवलगांसी करूं नये| कळह कदा ||२८||
येकाचा घात करूं नये| लटिकी गोही देऊं नये |
अप्रमाण वर्तों नये| कदाकाळीं ||२९||
चाहाडी चोरी धरूं नये| परद्वार करूं नये |
मागें उणें बोलों नये| कोणीयेकाचें ||३०||
समईं यावा चुकों नये| सत्वगुण सांडूं नये |
वैरियांस दंडूं नये| शरण आलियां ||३१||
अल्पधनें माजों नये| हरिभक्तीस लाजों नये |
मर्यादेविण चालों नये| पवित्र जनीं ||३२||
मूर्खासीं संमंध पडों नये| अंधारीं हात घालूं नये |
दुश्चितपणें विसरों नये| वस्तु आपुली ||३३||
स्नानसंध्या सांडूं नये| कुळाचार खंडूं नये |
अनाचार मांडूं नये| चुकुरपणें ||३४||
हरिकथा सांडूं नये| निरूपण तोडूं नये |
परमार्थास मोडूं नये| प्रपंचबळें ||३५||
देवाचा नवस बुडऊं नये| आपला धर्म उडऊं नये |
भलते भरीं भरों नये| विचारेंविण ||३६||
निष्ठुरपण धरूं नये| जीवहत्या करूं नये |
पाउस देखोन जाऊं नये| अथवा अवकाळीं ||३७||
सभा देखोन गळों नये| समईं उत्तर टळों नये |
धिःकारितां चळों नये| धारिष्ट आपुलें ||३८||
गुरुविरहित असों नये| नीच यातीचा गुरु करूं नये |
जिणें शाश्वत मानूं नये| वैभवेंसीं ||३९||
सत्यमार्ग सांडूं नये| असत्य पंथें जाऊं नये |
कदा अभिमान घेऊं नये| असत्याचा ||४०||
अपकीर्ति ते सांडावी| सद्कीर्ति वाढवावी |
विवेकें दृढ धरावी| वाट सत्याची ||४१||
नेघतां हे उत्तम गुण| तें मनुष्य अवलक्षण |
ऐक तयांचे लक्षण| पुढिले समासीं ||४२||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे उत्तामलक्षणनाम
              समास दुसराअ ||||२. २

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